Wednesday, 20 July 2016

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी - Durga Stuti - Argla Stotra

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते

Jayanti Manggala Kaali Bhadrakaali Kapaalini |
Durga Kssama Shiva Dhaatri Svaha Svadha Namostu Te ॥२॥

उपररोक्त श्लोक दुर्गा सप्तशती के अर्गला स्तोत्र से लिया गया है
इस श्लोक के माध्यम से देवी दुर्गा के ११ नमो की स्तुति की गयी है 
१) जयंती ->जिसकी हरदम जीत होती है।
२) मंगला -> मंगल और शुभत्व देने वाली है।
३) काली -> समय और काल से पर है।
४) भद्रकाली ->काल से पर जन्म और मृत्यु की नियामक  है।
५) कपालिनी ->कपाल ("नर मुंडों") की माला पहने हुए है।
६) दुर्गा ->कठोर दुःख का नाश करने वाली है।
७) क्षमा ->क्षमाशील क्षमा की प्रतिमूर्ति है।
८) शिवा ->सदा शुभत्व देने वाली शिव की पत्नी है।
९) धात्री ->जो सबका पालन करने वाली है।
१०) स्वाहा ->स्वाहा के रूप में सभी देवो पर चढ़ाये गए भेंट अंततः माँ दुर्गा को ही प्राप्त होते हैं।
११) स्वधा -> पितरों को अर्पित किये गए भेट को भी अंतिम रूप से वही स्वीकार करती है।

Wednesday, 13 July 2016

कर्पूर गौरम करुणावतारं - karpur gauram karunawatarm - shlokarth - श्लोकार्थ

कर्पूर गौरम करुणावतारं - Karpur Gauram Karunawatarm  


कर्पूर गौरम करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्र  हराम
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवम भवनीम सहितं नमामि


जिनका शरीर कपूर की तरह गोरा है, जो करुणा के अवतार है, जो शिव संसार के सार (मूल) हैं  और जो महादेव सर्पराज को गले के हर के रूप में धारण करते हैं, ऐसे हमेशा प्रसन्न रहने वाले भगवान शिव को अपने ह्रदय कमल में शिव और पार्वती के साथ नमस्कार करता हूँ 

Monday, 11 July 2016

शान्ताकारं भुजंगशयनम पद्मनाभं सुरेशं - लोकार्थ

Shantakarn Bhujngsynm Pdmnabn Sureshan - विष्णु स्तुति 

शान्ताकारं भुजंगशयनम पद्मनाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम।।
लक्ष्मी कांतम कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं ।
वंदे विष्णुं भव भय हरम सर्वलोकैकनाथम ।। 


भगवान विष्णु शांत स्वरुप के हैं, सर्प के शय्या पर सो रहे हैं, उनके नाभि पर कमल है और कमल पर ब्रह्मा जी विराजते हैं, समस्त विश्व के मूल हैं, आकाश के सामान सीमाहीन उनका विस्तृत स्वरुप है तथा मेघ के रंग के सामान सुन्दर अंगों वाले हैं। ऐसे लक्ष्मी पति कमल के समान नेत्रों  वाले जो योगी यतियों के ध्यान में भी बहुत परिश्रम से आते है, मैं समस्त संसार के एकाधिपति भगवान विष्णु को नमस्कार करता हूँ जो संसार के भय को हरने वाले हैं।  

Sunday, 10 July 2016

सुमुखश्चैव एकदन्तः च कपिलो गजकर्णकः - श्लोकार्थ

Twelve Name of Lord Ganesha

श्री गणेशाय नमः
सुमुखश्चैव एकदन्तः च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्न नाशो विनायकः।।
धूम्रकेतु गणाध्यक्षो भाल चन्दो गजाननः।
द्वादसै तानी नामानि यः पठेत श्रुणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्राम संकटे चैव विघ्नस्तश्य न जायते।।  

जिनके सुन्दर मुख है, एक दन्त है, जो गौर वर्ण के है तथा जो हाथी के कान वाले हैं। ऐसे लम्बोदर भगवन गणेश जो विघ्न का विनाश करने वाले विनायक गणेश हैं। धूम्रकेतु हैं ,  गणों के अध्यक्ष है देव सभा के अध्यक्ष हैं, जिनके सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं और जो हाथी के मुंह वाले हैं ऐसे भगवान गणेश के इन बारह नामों को जो  पढता  और स्मरण करता है उसके सारे संकट कट जाते हैं। बिद्यारभ के समय, विवाह में, गृह प्रवेश में, यात्रा में युद्ध में या किसी संकट में जो कोई गणपति के इन बारह नमो का स्मरण करता है उसके सारे विघ्नों का नास हो जाता है।